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गया का जनार्दन मंदिर: जीवित रहते हुए श्राद्ध करने की अनोखी परंपरा

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 राष्ट्र व्यू अपडेट्स | धर्म-केंद्रित विशेष रिपोर्ट

बिहार के गया शहर में स्थित
जनार्दन मंदिर
न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि अपनी अनोखी परंपरा के कारण भी प्रसिद्ध है। भस्मकूट पर्वत पर बना यह मंदिर पूरी तरह पत्थरों से निर्मित है और इसकी वास्तुकला श्रद्धालुओं को विशेष अनुभव कराती है।

भगवान विष्णु के जनार्दन रूप की पूजा

इस मंदिर में भगवान विष्णु जनार्दन स्वरूप में विराजमान हैं। विशेष बात यह है कि यहां श्रद्धालु स्वयं अपने लिए जीवित रहते हुए पिंडदान (श्राद्ध) कर सकते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और आत्मा को मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होता है।

जीते जी पिंडदान कौन कर सकता है?

हर व्यक्ति यहां जीते जी पिंडदान नहीं करता। यह परंपरा कुछ खास परिस्थितियों में निभाई जाती है:

  • जिन दंपतियों की संतान नहीं होती और जिनके बाद पिंडदान करने वाला कोई नहीं रहेगा।

  • वे लोग जो वैराग्य या संन्यास ले चुके होते हैं।

  • कुछ श्रद्धालु जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति पाने की इच्छा से यह अनुष्ठान करते हैं।

पितृपक्ष में उमड़ती भीड़

पितृपक्ष के दौरान यह मंदिर विशेष रूप से श्रद्धालुओं से भरा रहता है। देशभर से लोग यहां आकर पिंडदान और श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं। माना जाता है कि गया में किया गया श्राद्ध पितरों को तृप्त करता है और परिवार पर आशीर्वाद की वर्षा होती है।


निष्कर्ष

गया का जनार्दन मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसी परंपरा का केंद्र है जो व्यक्ति को जीवन रहते ही मोक्ष की ओर अग्रसर करती है। यही कारण है कि यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक महत्व रखता है।

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