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✨ कर्णभेदन संस्कार: परंपरा, अध्यात्म और आधुनिक विज्ञान का अनोखा संगम

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Rashtra View | Ear Piercing Ceremony 

भारत की प्राचीन परंपरा में सोलह संस्कारों का विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक है कर्णभेदन संस्कार, जिसे कई परिवार आज भी धार्मिक परंपरा के रूप में निभाते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह केवल आभूषण पहनने की एक सांस्कृतिक रीति नहीं बल्कि आध्यात्मिक विज्ञान, ऊर्जा प्रवाह और मानसिक संतुलन से जुड़ा एक गहन ज्ञान है?

Rashtra View आपके लिए लाया है कर्णभेदन संस्कार के पीछे छिपा अद्भुत रहस्य—जो भारत के ऋषि, नाथयोगी, आयुर्वेद और आधुनिक वैज्ञानिक सभी अपनी-अपनी भाषा में बताते आए हैं।


🟠 क्यों कहा जाता है कर्णभेदन संस्कार को विशेष?

सनातन परंपरा में यह माना गया कि कान:

  • शरीर में ऊर्जा आने-जाने का द्वार हैं

  • मानसिक शांति और सतर्कता से जुड़े हैं

  • ध्यान एवं चेतना को गहराई से प्रभावित करते हैं

  • सूक्ष्म नाड़ियों का केंद्र होते हैं

इसीलिए यह संस्कार केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक ऊर्जा जागरण की प्रक्रिया है।


🟡 नाथयोगियों का ‘कनफटा’ रहस्य

नाथ संप्रदाय में दीक्षा के बाद कान में विशेष प्रकार के कुंडल धारण करना अनिवार्य माना जाता था।
इन्हें “कनफटा योगी” कहा जाता था।

उनका मानना था कि—

  • कान में छेदन वायु और आकाश तत्व को संतुलित करता है

  • ध्यान की गहराई बढ़ाता है

  • ‘अनाहत नाद’ सुनने की क्षमता को सूक्ष्म बनाता है

इस परंपरा से पता चलता है कि भारत में कर्णभेदन को चेतना जागरण का माध्यम माना गया।


🟢 आधुनिक विज्ञान भी क्या यही कहता है?

1950 में फ्रांसीसी चिकित्सक डॉ. पॉल नोजियर ने बताया कि मानव कान का आकार उल्टे भ्रूण जैसा होता है।
इसी आधार पर आधुनिक चिकित्सा में जन्म हुआ—

🔹 इयर रिफ्लेक्सोलॉजी

🔹 ऑरिकुलर एक्यूपंक्चर

इन सिद्धांतों में माना गया कि—

  • कान के अलग-अलग बिंदु शरीर के विभिन्न अंगों से जुड़े हैं

  • हल्की उत्तेजना से ऊर्जा प्रवाह संतुलित होता है

  • तनाव में राहत मिलती है

  • ध्यान एवं शांति की अनुभूति होती है

ये निष्कर्ष कर्णभेदन की प्राचीन परंपरा को वैज्ञानिक दृष्टि से और मजबूत करते हैं।


🟩 आयुर्वेद के अनुसार कर्ण का महत्व

आयुर्वेद कहता है कि कान का संबंध वायु एवं आकाश महाभूत से है।
इसलिए कान:

  • चेतना

  • मानसिक स्थिरता

  • ऊर्जा संतुलन

  • शांति

में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सुश्रुत संहिता में भी कर्ण को मन की स्थिरता का द्वार बताया गया है।
इससे स्पष्ट है कि भारतीय चिकित्सा प्रणाली में कर्ण का महत्व बहुत पुराना और गहरा है।


🔵 विश्व की अन्य सभ्यताएँ भी यही मानती थीं

दुनिया की कई संस्कृतियों ने भी कर्ण को दिव्य ऊर्जा से जोड़ा—

  • मिस्र के पुजारी बड़े गोल कुंडल पहनते थे

  • चीन में कान को “माइक्रो सिस्टम” कहा गया

  • माया और एज़टेक संस्कृति में कान छिदवाना आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक था

यह बताता है कि कर्णभेदन एक वैश्विक चेतना-ज्ञान है।


🟣 “शेन मेन” — आत्मा का द्वार (WHO द्वारा मान्यता प्राप्त बिंदु)

कान के ऊपरी त्रिकोणीय हिस्से में एक बिंदु होता है—

शेन मेन (Spirit Gate)

WHO ने इसे “सबसे प्रभावी मास्टर पॉइंट” की श्रेणी में रखा है।

यह बिंदु—

  • तनाव में शांति

  • ध्यान की गहराई

  • मानसिक स्थिरता

  • ऊर्जा संतुलन

से जुड़ा माना जाता है।

नाथयोगियों का मानना था कि शेन मेन सक्रिय रहे तो अनाहत नाद का अनुभव सहज होता है।


🟤 कर्णभेदन संस्कार का वास्तविक उद्देश्य

सनातन परंपरा में कर्णभेदन:

  • बच्चों की ऊर्जा प्रणाली को संतुलित करने

  • मानसिक विकास को दिशा देने

  • आध्यात्मिक ग्रहणशीलता बढ़ाने

  • शरीर की सूक्ष्म चेतना को सक्रिय करने

का प्रतीक है।

यह केवल अलंकार नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विज्ञान का स्थायी संस्कार है।


🔴 निष्कर्ष: जहां परंपरा और विज्ञान एक होते हैं

कर्णभेदन संस्कार वह अद्भुत बिंदु है जहां—

  • प्राचीन आयुर्वेद

  • नाड़ी विज्ञान

  • योग

  • अध्यात्म

  • और आधुनिक विज्ञान

सब एक साझा सत्य पर मिलते हैं।

कान केवल ध्वनि सुनने का माध्यम नहीं, बल्कि चेतना का जीवंत द्वार हैं।
उन्हें स्पर्श करना मानो अपने भीतर की ऊर्जा को स्पर्श करना है।

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