नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चला आ रहा सिंधु जल समझौता एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में भारत द्वारा इस समझौते को स्थगित किए जाने के बाद पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। वहीं, भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जब तक सीमा पार आतंकवाद की घटनाएं जारी रहेंगी, तब तक समझौते पर पुनर्विचार संभव नहीं है।
दुशांबे (ताजिकिस्तान) में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के पहले ग्लेशियर सम्मेलन में भारत के पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने वैश्विक समुदाय के समक्ष पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की ओर से लगातार आतंकवाद को समर्थन मिलने से इस ऐतिहासिक जल समझौते का मूल उद्देश्य प्रभावित हुआ है।
भारत ने अपने बयान में दो टूक कहा कि किसी भी द्विपक्षीय समझौते को निभाने के लिए पारस्परिक विश्वास और शांतिपूर्ण संबंध आवश्यक हैं। अगर एक पक्ष लगातार उल्लंघन करता है, तो दूसरे पक्ष के पास निर्णय बदलने का अधिकार होता है।
सिंधु जल समझौता क्या है?
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह समझौता हुआ था। इसके अंतर्गत भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों के जल बंटवारे को लेकर नियम तय किए गए थे।
निष्कर्ष:
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह स्पष्ट किया है कि वह शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में विश्वास रखता है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।