BHU में पहली बार डिजिटल रैगिंग का मामला सामने आया, 28 सीनियर छात्र दोषी
वाराणसी, नेशनल डेस्क:
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के चिकित्सा विज्ञान संस्थान (IMS) से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां 28 सीनियर MBBS छात्रों को डिजिटल रैगिंग का दोषी पाया गया है। यह BHU में पहला ऐसा मामला है जिसमें रैगिंग डिजिटल माध्यम (Telegram App) के ज़रिए की गई।
क्या है पूरा मामला?
तीन महीने चली आंतरिक जांच में खुलासा हुआ कि सीनियर छात्रों ने 'एंटी-रैगिंग स्क्वॉड' के चेयरमैन के नाम से फर्जी टेलीग्राम प्रोफाइल बनाकर चार अलग-अलग ग्रुप तैयार किए। इन ग्रुपों के जरिए उन्होंने वीडियो कॉल्स में जूनियर छात्रों को अपमानजनक कार्य करने के लिए मजबूर किया।
जूनियर्स को दिए गए अमानवीय टास्क:
एक-दूसरे को थप्पड़ मारने के लिए कहना
कूलर में पानी भरवाना, कपड़े धुलवाना
जबरन डांस करवाना
कुछ छात्रों को हॉस्टल बुलाकर मानसिक उत्पीड़न करना
यह रैगिंग लगातार तीन से चार महीनों तक चली, जब तक कुछ छात्रों ने साहस करके शिकायत दर्ज नहीं कराई।
सीनियर छात्रों की चालाकी और धमकियां
रैगिंग को छुपाने के लिए सीनियर्स ने हर ग्रुप में सिर्फ 10-10 जूनियर्स जोड़े और उन्हें कक्षा से बाहर निकालने की धमकी भी दी। इस डर के माहौल में बहुत से छात्र चुप रहे।
BHU प्रशासन की सख्त कार्रवाई
तीन महीने की जांच के बाद जिन 28 छात्रों को दोषी पाया गया, उनके खिलाफ विश्वविद्यालय ने तुरंत ये कदम उठाए:
₹25,000 का जुर्माना
हॉस्टल से निलंबन
अभिभावकों को बुलावा (जुलाई के दूसरे सप्ताह में)
BHU प्रशासन का स्पष्ट संदेश:
“चाहे शारीरिक हो या डिजिटल—रैगिंग के किसी भी रूप को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
UGC और रैगिंग कानून का क्या है प्रावधान?
यूजीसी (UGC) और रैगिंग निषेध अधिनियम 2009 के अनुसार, किसी भी प्रकार की रैगिंग एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए छात्र को निलंबन, निष्कासन, जुर्माना और यहां तक कि आपराधिक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
यह मामला यह दर्शाता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म भी अब रैगिंग के नए माध्यम बनते जा रहे हैं। इससे निपटने के लिए तकनीकी निगरानी और कड़े नियमों की आवश्यकता है।