🌾 बोलदा पंजाब – पंजाब की धरती हरियाली के लिए मशहूर रही है, लेकिन आज यह गहराते भूजल संकट से जूझ रही है। विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि यदि कृषि की मौजूदा प्रणाली को नहीं बदला गया, तो आने वाले दशकों में पंजाब रेगिस्तान बन सकता है।
🌊 पंजाब का भूजल संकट
केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट (2024) के अनुसार, पंजाब का 75.16% हिस्सा रेड जोन में है। हर साल जमीन का जलस्तर 3 से 5 फीट नीचे जा रहा है और इसका मुख्य कारण धान की पारंपरिक खेती है। इस तकनीक में एक किलो धान पैदा करने के लिए 5000 से 6000 लीटर पानी खर्च होता है।
✅ समाधान: सीधी बिजाई और नानक खेती
1️⃣ सीधी बिजाई (Direct Seeding of Rice - DSR):
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खेत को जोतने के बाद सीधे बीज डाले जाते हैं, पनीरी की जरूरत नहीं होती।
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पानी की खपत घटकर 2000 से 2500 लीटर प्रति किलो धान रह जाती है।
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पैदावार: 30-34 क्विंटल प्रति एकड़।
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फसल की लागत घटती है, और अगली गेहूं की फसल पर भी अच्छा असर होता है।
2️⃣ नानक खेती (Nanak Farming):
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गहरी जुताई, क्यारियों में बीज और फसल अवशेषों का दोबारा उपयोग।
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पानी की खपत सबसे कम: 1000 लीटर प्रति किलो धान।
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पैदावार: 30-35 क्विंटल प्रति एकड़।
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यह तकनीक श्री गुरु नानक देव जी के संदेश – “पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत” पर आधारित है।
🌱 क्या कह रहे हैं किसान?
पटियाला के किसान जतिंदर सिंह पिछले 5 वर्षों से सीधी बिजाई कर रहे हैं और बताते हैं कि इससे पानी की खपत आधी हो गई है और लागत में 20% की कमी आई है।
लुधियाना के डॉ. अमरीक सिंह गिल का कहना है कि देर से लगाई गई सीधी बिजाई की फसल बेहतर होती है, हालांकि बाजार में थोड़ी देरी से बिकती है।
⚠️ पारंपरिक तकनीक की चुनौतियाँ
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भारी जल उपयोग (5000-6000 लीटर प्रति किलो धान)
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मिट्टी की ऊपरी परत कठोर होने से वर्षा जल जमीन में नहीं जा पाता
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भूजल मोटरों से निकाल कर प्रयोग होता है
लेकिन फिर भी गुरबचन सिंह जैसे किसान मानते हैं कि पराली जलाए बिना और प्राकृतिक खेती अपनाकर पारंपरिक तकनीक में भी सुधार किया जा सकता है।
📊 तुलनात्मक आंकड़े:
तकनीक | पानी की खपत (प्रति किलो धान) | पैदावार (प्रति एकड़) |
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पारंपरिक खेती | 5,000 – 6,000 लीटर | 25 – 30 क्विंटल |
सीधी बिजाई | 2,000 – 2,500 लीटर | 30 – 34 क्विंटल |
नानक खेती | लगभग 1,000 लीटर | 30 – 35 क्विंटल |
🔚 निष्कर्ष
पंजाब की धरती को बंजर होने से बचाने के लिए किसानों, सरकार और समाज को मिलकर जल संरक्षण तकनीकों को अपनाना होगा। सीधी बिजाई और नानक खेती न केवल जल संकट से बचा सकती हैं, बल्कि खेती को अधिक लाभदायक और टिकाऊ भी बना सकती हैं।
डिस्क्लेमर: यह लेख पर्यावरण और कृषि विशेषज्ञों की राय एवं विश्वसनीय रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जागरूकता फैलाना है।