नई दिल्ली – आधुनिक खेती के दौर में अधिक उत्पादन की होड़ और लालच के चलते प्राकृतिक खेती को पीछे छोड़ दिया गया है। खेतों में रासायनिक उर्वरकों, खासकर यूरिया का अत्यधिक उपयोग न केवल मिट्टी की उर्वरता को खत्म कर रहा है, बल्कि फसल की गुणवत्ता और मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल रहा है।
🌾 मिट्टी की सेहत पर गहराता संकट
एक समय था जब किसान प्राकृतिक विधियों से खेती करते थे, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती थी और फसलें भी पोषणयुक्त होती थीं। लेकिन अब अधिक उपज और मुनाफे की चाह में यूरिया जैसे नाइट्रोजन उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग किया जा रहा है, जिससे मिट्टी के सूक्ष्म पोषक तत्व खत्म होते जा रहे हैं।
🧪 विशेषज्ञों की चेतावनी
ICRIER (इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस) द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में कृषि विशेषज्ञों ने कहा कि जरूरत से ज्यादा यूरिया का इस्तेमाल मिट्टी को नुकसान पहुंचा रहा है। केवल 35-40% नाइट्रोजन ही फसलें ग्रहण कर पाती हैं, शेष पर्यावरण में बर्बाद हो जाती है, जिससे जल प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
🧒 बच्चों के स्वास्थ्य पर असर
विशेषज्ञों का कहना है कि जिंक की कमी वाली मिट्टी से उगने वाली फसलों में पोषण तत्वों की कमी होती है, जिससे बच्चों में विकास अवरुद्ध (स्टंटिंग) जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं। यह समस्या न केवल वर्तमान पीढ़ी के स्वास्थ्य के लिए, बल्कि देश की दीर्घकालिक आर्थिक क्षमता के लिए भी खतरा बन सकती है।
🌱 समाधान क्या है?
विशेषज्ञों ने प्राकृतिक और टिकाऊ खेती की ओर लौटने की सलाह दी है। साथ ही, मिट्टी की सेहत सुधारने वाले जैविक उपायों, फसल चक्र और संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई है। इससे फसलों की पोषण गुणवत्ता भी बेहतर होगी और आने वाली पीढ़ियों का स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहेगा।
✅ निष्कर्ष:
अब समय आ गया है कि हम मिट्टी की आवाज सुनें और खेती की टिकाऊ विधियों को अपनाकर न केवल अपनी फसलें बल्कि मानव जीवन को भी स्वस्थ बनाएं।
"जैसी मिट्टी, वैसी फसल – और वैसा ही इंसान।"