पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार की विवादित भूमि पूलिंग नीति-2025 (Land Pooling Policy-2025) पर गंभीर आपत्तियाँ जताई हैं। कोर्ट ने कहा कि यह नीति जल्दबाज़ी में लागू की गई प्रतीत होती है और इसमें कई अहम पहलुओं जैसे सामाजिक प्रभाव आकलन (Social Impact Assessment), पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment), समयसीमा और शिकायत निवारण तंत्र को पहले ही शामिल किया जाना चाहिए था।
यह टिप्पणियाँ हाईकोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दीं, जिसमें इस नीति को चुनौती दी गई है। अदालत ने 7 अगस्त को इस नीति के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी थी और राज्य सरकार को चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। अब अगली सुनवाई 10 सितंबर को होगी।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
"राज्य सरकार पंजाब में हज़ारों एकड़ उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण कर विकास परियोजनाओं को लागू करना चाहती है, लेकिन न तो कोई सामाजिक प्रभाव आकलन और न ही पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किया गया है। सरकार का कहना है कि आकलन बाद में किया जाएगा, जब उन्हें पता चलेगा कि कितने भूमिधारक इस योजना में शामिल हुए हैं। जबकि सर्वोच्च न्यायालय कई बार साफ कर चुका है कि शहरी विकास की अनुमति से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अनिवार्य है।"
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नीति में समयसीमा तय नहीं की गई है और प्रभावित लोगों की शिकायतों के समाधान के लिए कोई व्यवस्था भी नहीं की गई है।
साथ ही, केवल भूमिधारकों के लिए भत्ते की व्यवस्था की गई है, लेकिन उन भूमिहीन मज़दूरों, कारीगरों और अन्य लोगों के पुनर्वास का कोई प्रावधान नहीं है, जो सीधे तौर पर ज़मीन पर निर्भर हैं।
इसके अलावा अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि राज्य की वैधानिक संस्थाएँ स्वयं विकास कार्य करेंगी, लेकिन न तो कोई बजटीय प्रावधान किया गया है और न ही यह स्पष्ट किया गया है कि सरकार के पास इस नीति के तहत विकास कार्यों के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं।