तरन तारन (पंजाब): पंजाब की पंथक सीट तरन तारन में उपचुनाव का माहौल अब पूरी तरह गर्म हो गया है। यहां दो महिलाओं समेत कुल 15 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन चर्चा सिर्फ चार बड़ी पार्टियों — आप, अकाली दल, कांग्रेस, भाजपा — और सांसद अमृतपाल सिंह की पार्टी अकाली दल ‘वारिस पंजाब दे’ की ही हो रही है।
इस बार मुकाबला आप उम्मीदवार हरमीत सिंह संधू, शिअद की सुखविंदर कौर, कांग्रेस के करणबीर सिंह, भाजपा के हरजीत सिंह संधू और अकाली दल ‘वारिस पंजाब दे’ के मनदीप सिंह के बीच दिलचस्प बन गया है।
🔹 पंथक मुद्दों पर केंद्रित हुआ चुनाव
इस उपचुनाव में शिअद (बादल) खुलकर पंथक मुद्दों को उभार रही है। वहीं, कई अकाली धड़े खुले तौर पर ‘वारिस पंजाब दे’ के उम्मीदवार को समर्थन दे रहे हैं। इससे यह उपचुनाव पूरी तरह पंथक बहस का केंद्र बन गया है।
हालांकि विरोधी दल विकास, कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार और गैंगस्टरवाद जैसे मुद्दों को लेकर सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हर चर्चा का रुख अंततः धार्मिक और पंथक विषयों की ओर मुड़ जाता है। अब सवाल यही है कि असली पंथक दल कौन — यह बहस अकाली खेमे के अंदर भी चल रही है।
🔹 आम आदमी पार्टी की बदली रणनीति
इस बार आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया है। पार्टी न सिर्फ अपने कार्यकाल के विकास कार्यों को प्रचारित कर रही है बल्कि पंथक भावनाओं को भी साधने की कोशिश कर रही है।
प्रचार के दौरान आप नेताओं द्वारा गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस से जुड़े कार्यक्रमों की विशेष चर्चा की जा रही है। पंजाब सरकार ने इसके लिए देशभर के मुख्यमंत्रियों को निमंत्रण भेजे हैं। पार्टी चाहती है कि इन आयोजनों का सकारात्मक असर तरन तारन उपचुनाव में दिखे।
🔹 हरमीत सिंह संधू पर आप की उम्मीदें
पार्टी ने इस बार तीन बार के विधायक हरमीत सिंह संधू को उम्मीदवार बनाया है। संधू पहले शिअद में थे और बाद में ‘आप’ में शामिल हुए। उन्होंने अपना राजनीतिक सफर 2002 में बतौर निर्दलीय विधायक के रूप में शुरू किया था। बाद में 2007 और 2012 में उन्होंने अकाली दल के टिकट पर चुनाव जीते। हालांकि 2022 में वे हार गए, लेकिन इस बार पार्टी को उनसे काफी उम्मीदें हैं।
🔹 मुकाबला दिलचस्प, पंथक प्रभाव रहेगा निर्णायक
तरन तारन की राजनीति हमेशा से धार्मिक और पंथक रंग में रंगी रही है। ऐसे में इस उपचुनाव में भी वही परंपरा देखने को मिल रही है। किस पार्टी को जनता का भरोसा मिलेगा — यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन इतना तय है कि पंथक मुद्दे इस चुनाव का मुख्य केंद्र बने हुए हैं।
