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विजयादशमी या दशहरा आश्विन शुक्ल दशमी को पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। दशहरा के दिन रामलीला में जगह-जगह रावण वध का मंचन होता है। क्षत्रियों के यहां शस्त्रों की पूजा की जाती है। ब्रज के मंदिरों में विशेष दर्शन और नीलकंठ का पूजन शुभ माना जाता है।
दशहरा उत्सव की उत्पत्ति
दशहरा उत्सव की उत्पत्ति को लेकर कई मत हैं। कुछ क्षेत्रों में इसे कृषि उत्सव माना जाता है, जहां नए अन्नों की हवि दी जाती है। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यह रणयात्रा का प्रतीक है क्योंकि दशहरा के समय वर्षा समाप्त हो जाती है और फसल की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाती है। प्राचीन काल में शमी वृक्ष और वैदिक यज्ञों के माध्यम से अग्नि उत्पन्न की जाती थी। यह पर्व नवरात्रि के उपरांत मनाया जाता है और देवी के महिषासुर वध का भी स्मरण करता है।
रामलीला का महत्व
दशहरा पर्व में रामलीला का मंचन बेहद महत्त्वपूर्ण है। इसमें राम, सीता और लक्ष्मण के जीवन वृत्तांत का चित्रण होता है। उत्तरी भारत में यह दस दिनों तक चलता है और दशमी के दिन रावण और उसके साथियों की आकृतियों का दहन किया जाता है। आधुनिक युग में रामलीला न केवल सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि नशे और अनुचित प्रवृत्तियों पर रोक लगाने में भी सहायक है।
पौराणिक और पारंपरिक मान्यताएं
कुछ स्थानों पर भैंसे या बकरे की बलि दी जाती है। स्वतंत्रता से पूर्व रियासतों में विजयादशमी पर दरबार, हाथी दौड़ और घोड़ों की सवारी आयोजित की जाती थी। यह पर्व राजा-शासकों द्वारा उत्सव और शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक भी माना जाता था।
वनस्पति पूजन
विजयादशमी पर शमी और अपराजिता पौधे का पूजन विशेष महत्व रखता है। शमी की पत्तियों का आदान-प्रदान समृद्धि और विजय की कामना करता है। अपराजिता के नीले फूल विष्णु को प्रिय हैं और इसे घर में नियमित रखने से समृद्धि और सफलता मिलती है।
मेले और उत्सव
दशहरा पर्व पर विभिन्न जगहों पर बड़े मेले आयोजित किए जाते हैं। लोग परिवार और दोस्तों के साथ आते हैं और मेले का आनंद उठाते हैं। मेले में खिलौने, कपड़े, व्यंजन और अन्य सामान उपलब्ध रहते हैं।