नई दिल्ली। राष्ट्र व्यू।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। इस व्रत का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। इस दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा करने से पापों का नाश होता है और मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती है।
व्रत का महत्व
पापों के रूपी हाथी को व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से नियंत्रित करने के कारण ही इसे पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। इस दिन मौन रहकर भगवान का स्मरण, उपवास और भक्ति करने से मन शुद्ध होता है और जीवन में सद्गुणों का विकास होता है।
व्रत विधि
-
दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत का नियम शुरू करना चाहिए।
-
एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
-
यथासंभव पूरे दिन उपवास करें, अन्न ग्रहण न करें। आवश्यकता होने पर केवल फलाहार कर सकते हैं।
-
भगवान पद्मनाभ (विष्णु) का पंचामृत स्नान कराएं और चरणामृत परिवार सहित ग्रहण करें।
-
गंध, पुष्प, धूप, दीपक और नैवेद्य अर्पित कर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
-
रात्रि जागरण कर भगवान का स्मरण करें।
-
द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन व दान देकर व्रत संपन्न करें।
पौराणिक कथा
प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक व्याध (बहेलिया) रहता था। उसने हिंसा, मद्यपान और मिथ्या भाषण में जीवन बिताया। मृत्यु के समय भयभीत होकर वह महर्षि अंगिरा की शरण में पहुँचा। महर्षि ने उसे पापांकुशा एकादशी का व्रत करने का उपदेश दिया। व्रत-पूजन के प्रभाव से वह पापमुक्त होकर विष्णु लोक को गया और यमदूत खाली हाथ लौट गए।
निष्कर्ष
पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में शांति और समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त होता है। भगवान पद्मनाभ की आराधना से भक्त को विशेष कृपा प्राप्त होती है।