कभी खुले आसमान और देहाती खूबसूरती से भरा गुरुग्राम आज देश के सबसे अव्यवस्थित शहरी इलाकों में गिना जाता है। पिछले 25 वर्षों में इसका सफर उम्मीदों से शुरू हुआ, लेकिन धीरे-धीरे यह शहर बेहद भीड़भाड़ और अव्यवस्था का केंद्र बन गया।
गांव से शहर तक का बदलाव
गुरुग्राम को कभी एक शांत गांव के रूप में जाना जाता था। यहां की खुली हवा, हरियाली और सरल जीवनशैली लोगों को आकर्षित करती थी। लेकिन आईटी सेक्टर और कॉर्पोरेट कंपनियों के आगमन के बाद यहां विकास की रफ्तार अचानक तेज हुई।
गगनचुंबी इमारतें, मॉल और हाईवे ने इस जगह की तस्वीर बदल दी। शहर ने आधुनिकता की ओर कदम बढ़ाए, लेकिन इसकी कीमत योजना की कमी और अनियंत्रित निर्माण के रूप में चुकानी पड़ी।
अव्यवस्था और ढहती व्यवस्था
आज गुरुग्राम की हकीकत कुछ और ही है।
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ट्रैफिक जाम आम समस्या बन चुका है।
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सीवर और जलभराव की समस्या हर बारिश में लोगों को परेशान करती है।
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अवैध निर्माण और तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने बुनियादी ढांचे पर बोझ डाल दिया है।
लोगों को लगता था कि गुरुग्राम भारत का आधुनिक चेहरा बनेगा, लेकिन हकीकत में यह शहर बेतरतीब विकास और कमजोर प्रशासनिक ढांचे का उदाहरण बन गया है।
वादों से हकीकत तक
गुरुग्राम का सफर एक ऐसे वादे की तरह है जो पूरा तो हुआ, लेकिन उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका। यहां रोजगार और आधुनिक सुविधाएं तो आईं, लेकिन साथ ही प्रदूषण, अव्यवस्था और ढहते सिविक इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्याएं भी बढ़ गईं।