पंजाब में आई मौजूदा बाढ़ ने एक बार फिर 1988 की भयावह यादें ताज़ा कर दी हैं। उस समय सतलुज, ब्यास और रावी नदियों ने तबाही मचाई थी और 500 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। आज, 2025 की बाढ़ ने लोगों को उसी दौर की याद दिला दी है।
बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित जिले
इस बार की बाढ़ ने कम से कम 12 जिलों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इनमें गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, कपूरथला, तरन तारन, फिरोजपुर, फाजिल्का, जालंधर और रूपनगर (रोपड़) जैसे इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित रहे। इन इलाकों में हजारों परिवार बेघर हो गए हैं और लोग अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
प्राकृतिक आपदा या इंसानी लापरवाही?
विशेषज्ञों का कहना है कि बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है, लेकिन इंसानी गतिविधियों ने इसे और भी गंभीर बना दिया है।
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नदियों के किनारे अतिक्रमण,
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जल निकासी की नालियों का बंद होना,
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जंगलों की कटाई और कंक्रीटीकरण,
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और जलवायु परिवर्तन — इन सबने बाढ़ के खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है।
कई अध्ययनों में यह साफ कहा गया है कि अगर समय रहते बाढ़ प्रबंधन पर ध्यान दिया जाता, तो आज नुकसान इतना भयावह नहीं होता।
आगे की चुनौती
विशेषज्ञ मानते हैं कि पंजाब को अब सिर्फ राहत और बचाव से आगे बढ़कर दीर्घकालिक समाधान अपनाने होंगे। नदियों के बाढ़ मैदानों से अतिक्रमण हटाना, प्राकृतिक जल निकासी को बहाल करना और जंगलों की कटाई पर रोक लगाना बेहद जरूरी है।