3 सितंबर को जीएसटी काउंसिल ने अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में बड़ा बदलाव किया। अब कम स्लैब और घटे हुए टैक्स रेट्स लागू होंगे। सरकार का मानना है कि इससे आम जनता को राहत मिलेगी और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। हालांकि, जहां ज्यादातर सेक्टर इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं, वहीं कुछ उद्योगों ने नाराज़गी भी जताई है।
कौन-से सेक्टर होंगे फायदे में?
जीएसटी दरों में कटौती से एफएमसीजी (साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट), ऑटोमोबाइल्स, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स और कंज्यूमर गुड्स सेक्टर को सबसे ज्यादा राहत मिलेगी। इससे न सिर्फ उपभोक्ताओं को सस्ते दामों पर सामान मिलेगा बल्कि मांग भी बढ़ेगी।
किन्हें नुकसान की चिंता है?
कुछ सेक्टर जैसे लक्ज़री गुड्स, शराब और सिगरेट जैसे उत्पाद इस बदलाव से खास खुश नहीं हैं। इन पर टैक्स स्ट्रक्चर में ज्यादा राहत नहीं मिली। साथ ही, कुछ राज्यों को भी राजस्व (Revenue) घटने की चिंता सता रही है।
जीएसटी रेशनलाइजेशन कब से चल रहा है?
दरअसल, जीएसटी स्लैब को सरल बनाने की कोशिशें पिछले कई वर्षों से चल रही थीं। शुरुआत में 5 स्लैब थे, जिन्हें घटाकर अब 2 मुख्य स्लैब (5% और 18%) कर दिया गया है। इससे टैक्स सिस्टम आसान होगा और विवाद भी कम होंगे।
अमेरिका के 50% टैरिफ का असर?
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हाल ही में अमेरिका की ओर से भारतीय उत्पादों पर 50% टैरिफ लगाने के फैसले ने भी भारत सरकार को जीएसटी दरों को घटाने के लिए प्रेरित किया। इसका मकसद भारतीय उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए सक्षम बनाना है।
राजस्व पर क्या असर होगा?
सरकार और राज्यों के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्व की भरपाई है। कम टैक्स दरों का मतलब है कि शुरुआती दौर में राजस्व घट सकता है। हालांकि, सरकार का दावा है कि डिमांड बढ़ने और टैक्स कलेक्शन बढ़ने से लंबे समय में घाटा पूरा हो जाएगा।
आगे क्या?
जीएसटी दरों में यह कटौती एक बड़े सुधार (Reform) की शुरुआत है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर सरकार टैक्स कलेक्शन की निगरानी को और मजबूत करती है और राज्यों को मुआवजा समय पर देती है, तो यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा।