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हिमाचल में दो भाइयों ने संविधान को साक्षी मानकर की शादी — नहीं बुलाए पंडित, न लिए फेरे, समाज में दी नई मिसाल

Sumansorey
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हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले से एक अनोखी और प्रेरणादायक खबर सामने आई है।
यहां शिलाई विधानसभा क्षेत्र के नैनीधार स्थित कलोग गांव में दो सगे भाइयों ने पारंपरिक रस्मों और कर्मकांडों को दरकिनार करते हुए भारतीय संविधान को साक्षी मानकर विवाह किया।

इस शादी की चर्चा अब पूरे क्षेत्र में जोरों पर है क्योंकि न तो किसी पंडित को बुलाया गया, न ही फेरे लिए गए और न ही कोई मंत्रोच्चारण हुआ।


📜 संविधान की शपथ लेकर बंधे विवाह के बंधन में

दोनों भाइयों — सुनील कुमार बौद्ध और विनोद कुमार आजाद — ने डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेकर यह कदम उठाया।
दोनों ने विवाह समारोह में संविधान की शपथ ली और एक-दूसरे का साथ जीवनभर के लिए स्वीकार किया।

इनका मानना है कि विवाह दो दिलों का मेल है, जिसे निभाने के लिए किसी परंपरागत कर्मकांड या धार्मिक रीति की आवश्यकता नहीं होती।


💌 शादी का कार्ड भी था अलग

इन भाइयों की शादी के निमंत्रण पत्र ने भी लोगों का ध्यान खींचा।
कार्ड पर किसी देवी-देवता की तस्वीर नहीं छपवाई गई थी, बल्कि उन महान विभूतियों के चित्र प्रकाशित किए गए जिन्होंने समाज में समानता, शिक्षा और सुधार का मार्ग दिखाया।
इस कदम ने स्पष्ट संदेश दिया कि समाज में बदलाव संविधान और मानवीय मूल्यों से संभव है।


👨‍💼 दोनों भाई सरकारी सेवा में

सुनील कुमार बौद्ध और विनोद कुमार आजाद दोनों ही सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं और सामाजिक सुधार के कार्यों में हमेशा अग्रणी रहते हैं।
वे समाज में जागरूकता फैलाने और अंधविश्वास व भेदभाव को समाप्त करने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।


💐 परिवार और समाज का मिला पूरा समर्थन

शादी में शामिल सभी लोगों ने इस पहल का स्वागत किया।
सुनील कुमार बौद्ध ने शिलाई के कटाड़ी गांव की रितु से और विनोद कुमार आजाद ने शिलाई के नाया गांव की रीना वर्मा से विवाह किया।

हालांकि उन्होंने पारंपरिक कर्मकांडों को नकार दिया, लेकिन अन्य सामाजिक रस्में जैसे मामा स्वागत, वरमाला, और बारात को निभाया गया, जिससे समारोह में सामाजिक संतुलन बना रहा।


🌟 सामाजिक परिवर्तन की मिसाल

इन दोनों भाइयों की यह पहल अब सामाजिक सुधार की मिसाल बन चुकी है।
लोग इसे एक नई सोच और समानता के प्रतीक विवाह के रूप में देख रहे हैं।
इसने यह साबित किया कि विवाह केवल धार्मिक नहीं बल्कि संविधान और समान अधिकारों पर आधारित सामाजिक समझौता भी हो सकता है।

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