पंजाब में किसानों का गुस्सा एक बार फिर सड़कों पर फूट पड़ा।
राज्य के अलग-अलग जिलों में किसानों और मजदूर संगठनों ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन किए।
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि हाल ही में आए भारी बाढ़ से हुए नुकसान के बावजूद अब तक किसी भी सरकार ने राहत या मुआवजा नहीं दिया है।
🔸 14 जिलों में 59 स्थानों पर प्रदर्शन
किसान मजदूर मोर्चा और उससे जुड़े विभिन्न संगठनों ने आज पंजाब के 14 जिलों में करीब 59 स्थानों पर प्रदर्शन आयोजित किए।
कई जगहों पर किसानों ने प्रतीकात्मक विरोध के रूप में पुतले फूंके और धरना दिया।
मोर्चा ने कहा कि यह विरोध “जनता की पीड़ा की आवाज़” है, जो अब सरकार तक पहुंचनी ही चाहिए।
🔹 ‘पंजाब बाढ़ से तबाह हुआ, सरकारें नदारद हैं’ — सर्वन सिंह पंधेर
किसान मजदूर मोर्चा के अध्यक्ष सर्वन सिंह पंधेर ने कहा कि हालिया बाढ़ों ने
किसानों की फसलें, पशुधन, दुकानों और मजदूरों के रोजगार को पूरी तरह बर्बाद कर दिया।
इसके बावजूद सरकार की ओर से कोई ठोस राहत योजना नहीं दिखाई दी।
उन्होंने कहा,
“45 दिनों से अधिक समय बीत गया, लेकिन न राज्य सरकार ने और न ही केंद्र ने कोई राहत फंड जारी किया।
भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर डैम से पानी छोड़ने के कारण यह एक ‘मानव निर्मित आपदा’ बनी।
इस पर न्यायिक जांच होनी चाहिए।”
🔸 रेत और पराली के मुद्दे पर भी उठी आवाज़
सर्वन सिंह पंधेर ने आगे कहा कि किसानों को रेत निकालने के अधिकार मिलने चाहिए और
सरकार को खेतों से निकाली गई रेत किसानों को देने की अनुमति देनी चाहिए।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि कई मंडियों में सरकारी खरीद नहीं हो रही, जिससे किसानों को परेशानी झेलनी पड़ रही है।
उन्होंने पराली पर लगाई जा रही गलत एफआईआर और लाल एंट्री पर भी आपत्ति जताई।
पंधेर के अनुसार,
“पराली से होने वाला प्रदूषण कुल धुएं का 6% से भी कम है,
लेकिन सरकार इसे बड़ा मुद्दा बनाकर किसानों पर कार्रवाई कर रही है।”
🔹 ‘बाढ़ की त्रासदी का राजनीतिकरण न करें’
किसान संगठनों ने सरकार से अपील की है कि
बाढ़ की त्रासदी को राजनीतिक मुद्दा न बनाया जाए, बल्कि
इसे मानवीय संकट के रूप में देखते हुए राहत और पुनर्वास कार्यों में तेजी लाई जाए।
किसानों ने कहा कि पंजाब के कई इलाकों में अब भी खेतों में पानी भरा हुआ है
और ग्रामीणों को अपने दम पर जिंदगी पटरी पर लानी पड़ रही है।