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सुबाथू में मिला 4.5 करोड़ वर्ष पुराना स्नेकहेड मछली का जीवाश्म, भारत के भूवैज्ञानिक इतिहास में बड़ा खुलासा!

Sumansorey
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सोलन (हिमाचल प्रदेश):
हिमाचल प्रदेश के सुबाथू क्षेत्र से एक ऐसी खोज सामने आई है जिसने वैज्ञानिक जगत में हलचल मचा दी है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर और प्रसिद्ध भूविज्ञानी डा. रितेश आर्या ने यहां से लगभग 4.5 करोड़ वर्ष पुरानी स्नेकहेड मछली की खोपड़ी का जीवाश्म (फॉसिल) खोजा है।

यह खोज न केवल मीठे पानी की मछलियों के विकास इतिहास को नई दिशा देगी, बल्कि यह टेथिस सागर के भूवैज्ञानिक परिवर्तन को समझने में भी एक अहम कड़ी साबित होगी।


🌍 टेथिस सागर के समय की अनमोल झलक

डा. आर्या ने यह जीवाश्म सुबाथू संरचना के पास एक छोटी धारा के किनारे खोजा। यह धारा उन अवसादी परतों को काटते हुए बहती है, जो उस युग की हैं जब टेथिस महासागर धीरे-धीरे लुप्त हो रहा था और भारत महाद्वीप अफ्रीका से अलग होकर एशिया से टकराने की दिशा में आगे बढ़ रहा था।

उस समय हिमालय पर्वतों का निर्माण नहीं हुआ था और धरती का अधिकांश भाग टेथिस महासागर के जल से ढका हुआ था। ऐसे में मीठे पानी की मछली का जीवाश्म मिलना यह प्रमाणित करता है कि उस काल में सुबाथू की परतें एक उथले समुद्री वातावरण में बनी थीं, जो धीरे-धीरे महाद्वीपीय स्वरूप ले रही थीं।


🐟 स्नेकहेड मछली की पहचान और वैज्ञानिक महत्व

इस जीवाश्म की पहचान पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के भूविज्ञान विभाग के प्रो. राजीव पत्नायक ने स्नेकहेड फिश के रूप में की। वहीं, वरिष्ठ जीवाश्म विशेषज्ञ प्रो. अशोक साहनी ने इस खोज को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया।
उन्होंने कहा कि, “पहले भी सुबाथू से मछलियों के जीवाश्म मिले हैं, लेकिन डा. आर्या की यह खोज हिमालय की तराइयों में मीठे पानी की मछलियों के प्रारंभिक विकास का सबसे ठोस प्रमाण है।”


🏛️ टेथिस फॉसिल म्यूजियम और डा. आर्या की उपलब्धियाँ

डा. रितेश आर्या, जो टेथिस फॉसिल म्यूजियम के संस्थापक भी हैं, ने बताया कि वे 1988 से जीवाश्म एकत्र कर रहे हैं, जब वे पंजाब विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग में छात्र थे।
कसौली और आसपास के क्षेत्रों से उन्होंने अब तक गैस्ट्रोपोड, बाइवाल्व, शार्क और व्हेल के कई जीवाश्म खोजे हैं।

इन दुर्लभ खोजों को लोकप्रिय टीवी कार्यक्रमों ‘टर्निंग’ और ‘सुरभि’ में भी प्रदर्शित किया गया था।
वर्तमान में सुबाथू में मिले स्नेकहेड मछली के जीवाश्म का विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन चल रहा है और इसके निष्कर्ष जल्द ही प्रकाशित किए जाएंगे।

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