🌼 स्थितप्रज्ञता: जीवन में शांति, धैर्य और सफलता की सर्वोच्च अवस्था
मानव जीवन में सुख और दुख दोनों आते हैं। यह प्रकृति का नियम है। इतिहास बताता है कि जब ईश्वर ने मानव रूप धारण किया—चाहे भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण या महात्मा बुद्ध—उन्होंने भी इन दोनों अवस्थाओं का अनुभव किया।
भारतीय दर्शन में कहा गया है कि सच्चा योगी वह है जो सुख में अहंकार और दुख में निराशा से दूर रहें।
इसी अवस्था को “स्थितप्रज्ञता” कहा जाता है—एक ऐसी मानसिक स्थिति जहाँ मनुष्य किसी भी परिस्थिति में स्थिर, शांत और समभाव में रहता है।
🕉️ गीता में स्थितप्रज्ञता का अर्थ
श्रीमद्भगवद् गीता के अध्याय 2 में अर्जुन भगवान कृष्ण से पूछते हैं—
“स्थितप्रज्ञ पुरुष कौन है? उसके लक्षण क्या हैं? वह कैसे चलता-फिरता और कैसे बोलता है?”
भगवान कृष्ण उत्तर देते हैं—
“जो मनुष्य अपनी मनोगत इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर लेता है और आत्मा में संतुष्ट रहता है—वही स्थितप्रज्ञ कहलाता है।”
(गीता 2/55)
अर्थात:
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जो व्यक्ति कामनाओं से परे हो
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जो डर, चिंता, क्रोध और लालसा से मुक्त हो
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जो परिस्थिति बदलने पर भी अंदर से शांत और स्थिर रहे
वही स्थितप्रज्ञ है।
🌟 क्यों आवश्यक है स्थितप्रज्ञता?
जीवन में अक्सर हम
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जल्दी परेशान हो जाते हैं
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डर के कारण गलत निर्णय लेते हैं
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सुख मिलने पर अहंकार में बह जाते हैं
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दुख मिलने पर टूट जाते हैं
ऐसी स्थिति में मन बार-बार विचलित होता है, और व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले पाता।
गीता कहती है—
स्थिर मन से किया गया कार्य ही पूर्ण होता है।
इसलिए:
✔ धैर्य
✔ शांति
✔ आत्मविश्वास
✔ संतुलित विचार
ये सफल जीवन की अनिवार्य कुंजियाँ हैं।
⚖️ स्थितप्रज्ञता जीवन में क्या बदलाव लाती है?
1️⃣ भावनात्मक संतुलन
व्यक्ति सुख-दुःख में एक समान रहता है।
2️⃣ नकारात्मक विचारों पर नियंत्रण
राग, द्वेष, भय और क्रोध कम होते हैं।
3️⃣ निर्णय क्षमता मजबूत होती है
मन विक्षेप रहित हो जाता है।
4️⃣ कार्यों में निरंतरता आती है
कर्मयोगी परिणाम की चिंता छोड़कर कार्य में लगे रहते हैं।
5️⃣ बाहरी वस्तुओं पर निर्भरता समाप्त
सुख का स्रोत बाहरी दुनिया नहीं, भीतर का प्रकाश बन जाता है।
🌼 स्थिर + प्रज्ञा = स्थितप्रज्ञता
आचार्य नंदकिशोर श्रीमाली बताते हैं कि—
“स्थितप्रज्ञता दो शब्दों का मेल है— स्थिर + प्रज्ञा।”
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स्थिर = अडिग, शांत, धैर्यवान
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प्रज्ञा = आत्मप्रकाशित ज्ञान
जहाँ मन ठहरा हुआ हो और ज्ञान सक्रिय, वही स्थितप्रज्ञ अवस्था कहलाती है।
यह गुण
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बालक
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युवा
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नौकरीपेशा
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व्यापारी
हर किसी के लिए आवश्यक है।
क्योंकि बिना मानसिक शांति के कोई भी कार्य पूरी क्षमता से नहीं किया जा सकता।
🧘 कैसे प्राप्त होती है स्थितप्रज्ञता?
✔ ध्यान
✔ आत्मचिंतन
✔ इच्छाओं पर नियंत्रण
✔ जीवन के द्वंद्वों को स्वीकार करना
✔ सकारात्मक दृष्टिकोण
इन सभी से मन शांत, स्थिर और केंद्रित होता है।
🌺 निष्कर्ष
जीवन में आनंद बढ़ाने का तरीका है—
मन की इच्छाओं को नियंत्रित करना और अपने भीतर सुख की अनुभूति ढूँढना।
गीता कहती है कि जो व्यक्ति समभाव में रहता है वही


