कभी देश की सबसे मज़बूत राजनीतिक ताक़त रही कांग्रेस पार्टी आज भी अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता से घिरी हुई है। पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष से ज़्यादा आंतरिक कलह और निष्क्रियता बन चुकी है।
अगले महीने जब मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में तीन साल पूरे करने जा रहे हैं, तब भी पार्टी कई राज्यों में गुटबाज़ी और असहमति से जूझ रही है। हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में या तो विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं या फिर संगठनात्मक ढांचे को मज़बूत करने की ज़रूरत है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व इस दिशा में ठोस कदम उठाने में नाकाम साबित हो रहा है।
सीडब्ल्यूसी में बदलाव अधर में
पिछले छह महीनों से कांग्रेस की टॉप लीडरशिप, जिसमें खड़गे और गांधी परिवार शामिल हैं, कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) में आवश्यक बदलाव नहीं कर पाई है। नए चेहरों को जगह देने के लिए कई वरिष्ठ सदस्यों को हटाने की ज़रूरत थी, लेकिन यह फैसला लगातार टलता जा रहा है।
इस वजह से राजनी पाटिल (हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़), बी.के. हरिप्रसाद (हरियाणा), हरीश चौधरी (मध्य प्रदेश), गिरीश चोडनकर (तमिलनाडु और पुडुचेरी), अजय कुमार लल्लू (ओडिशा), के. राजू (झारखंड), मीनाक्षी नटराजन (तेलंगाना), सप्तगिरि शंकर उलका (मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम और नागालैंड) और कृष्णा अल्लावरु जैसे नेताओं को भी उचित भूमिका नहीं मिल पा रही है।