नई दिल्ली: आज के समय में भारत के युवा तनाव, चिंता और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं से तेजी से जूझ रहे हैं।
एक नई रिसर्च में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि देश के लगभग 70% युवा तनावग्रस्त हैं और 60% से अधिक छात्र डिप्रेशन के लक्षणों का सामना कर रहे हैं।
🔹 स्टडी में क्या पाया गया?
यह अध्ययन आंध्र प्रदेश के अमरावती स्थित SRM यूनिवर्सिटी और सिंगापुर की एक यूनिवर्सिटी के संयुक्त प्रयास से किया गया।
रिसर्च में दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद और कोलकाता के लगभग 2,000 छात्रों को शामिल किया गया।
इन छात्रों की आयु 18 से 29 वर्ष के बीच थी, जिनमें 52.9% महिलाएं और 47.1% पुरुष थे।
रिपोर्ट के अनुसार:
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70% छात्र तनाव (Stress) से प्रभावित पाए गए।
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60% से अधिक में डिप्रेशन के लक्षण (Symptoms of Depression) देखे गए।
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अधिकांश छात्रों ने बताया कि पढ़ाई, करियर और रिजल्ट का दबाव उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है।
🔹 युवाओं पर तनाव के मुख्य कारण
रिसर्च के अनुसार, भारतीय युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य की गिरावट के कई कारण सामने आए हैं:
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पढ़ाई और करियर का बढ़ता दबाव:
अच्छे ग्रेड पाने और बेहतर नौकरी हासिल करने की चाह युवाओं पर अत्यधिक मानसिक दबाव डाल रही है। -
असफलता का डर:
समाज और परिवार की उम्मीदें इतनी बढ़ चुकी हैं कि असफलता युवाओं के आत्मविश्वास को तोड़ रही है। -
सोशल मीडिया का प्रभाव:
दूसरों की सफलता देखकर अपने जीवन की तुलना करना डिप्रेशन को और बढ़ा रहा है। -
पर्याप्त मानसिक समर्थन का अभाव:
स्कूलों और कॉलेजों में काउंसलिंग सेवाओं की कमी युवाओं की मानसिक समस्याओं को गंभीर बना रही है।
🔹 अध्ययन में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य
अध्ययन में शामिल कई छात्रों ने बताया कि लगातार बेहतर प्रदर्शन की उम्मीदें,
प्रतिस्पर्धा का दबाव और असफल होने का डर उन्हें भावनात्मक रूप से थका देता है।
कई छात्रों ने खुद को “भावनात्मक रूप से उदास और असहाय” बताया।
रिसर्च का कहना है कि अगर समय रहते मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया गया,
तो आने वाले वर्षों में यह समस्या और गंभीर रूप ले सकती है।
🔹 समाधान क्या है?
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि युवाओं को:
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रोजाना ध्यान (Meditation) और योग जैसी गतिविधियों को अपनाना चाहिए।
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परिवार और दोस्तों के साथ खुलकर बातचीत करनी चाहिए।
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सोशल मीडिया से कुछ समय दूर रहना चाहिए।
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जरूरत पड़ने पर काउंसलर या मनोवैज्ञानिक से सलाह लेनी चाहिए।