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नग्गर में देवताओं का महाकुंभ: 229 देवी-देवताओं की उपस्थिति, हजारों श्रद्धालुओं ने देखी चौथी जगती की भव्यता

Sumansorey
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हिमाचल प्रदेश के मनाली उपमंडल के ऐतिहासिक गांव नग्गर में शुक्रवार को देव आस्था और परंपराओं का भव्य संगम देखने को मिला। यहां आयोजित देवताओं के महाकुंभ में कुल्लू, लाहुल और मंडी जिलों के 229 देवी-देवताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस मौके पर हजारों देव कारकूनों, देवलुओं और श्रद्धालुओं ने भाग लेकर चौथी जगती के पावन दृश्य के साक्षी बने।


🌿 देवताओं ने दी चेतावनी — "देव स्थलों से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं"

देवताओं ने इस जगती के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा कि देव स्थलों से छेड़छाड़ और गोमाता की अनदेखी किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं की जाएगी। उन्होंने लोगों को चेतावनी दी कि यदि ऐसे कार्य जारी रहे तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

देवताओं ने कहा, “हमने अभी तो केवल एक लौटा पानी दिया है। अगर मानव अपने स्वार्थ और मनमानी से नहीं रुका, तो भगवान रघुनाथ के चरण छूने को विवश होना पड़ेगा।


🔱 देव संस्कृति की रक्षा का संकल्प

नग्गर में हुई यह जगती केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि देव संस्कृति की रक्षा का प्रतीक बनी। देवी-देवताओं ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि नग्गर और ढालपुर में विशेष पूजा-पाठ किया जाएगा ताकि समाज में धार्मिक अनुशासन और श्रद्धा की भावना मजबूत बनी रहे।

देव कारकूनों ने बताया कि इस बार की जगती का महत्व इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें तीन जिलों के देव प्रतिनिधियों ने एक साथ भाग लिया, जो वर्षों बाद देखने को मिला है।


🌸 आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम

नग्गर की वादियों में जब ढोल-नगाड़ों और शंखों की गूंज सुनाई दी, तो पूरा क्षेत्र आस्था के रंग में रंग गया। श्रद्धालु सुबह से ही देवताओं की झांकियों और रथ यात्रा के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़े।

महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में देव आरती में भाग लिया, वहीं युवाओं ने देव संस्कृति को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।


📿 स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया

स्थानीय निवासियों ने कहा कि ऐसे आयोजनों से न केवल धार्मिक एकता मजबूत होती है बल्कि हिमाचल की देव परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का अवसर भी मिलता है। लोगों ने देव परिषद के इस आयोजन की सराहना की और इसे “देव संस्कृति का सबसे बड़ा पर्व” बताया।


💬 निष्कर्ष:

नग्गर में हुआ यह देव महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि हिमाचल की देव परंपरा और सांस्कृतिक एकता का जीवंत उदाहरण बन गया। 229 देवी-देवताओं की उपस्थिति और हजारों श्रद्धालुओं की सहभागिता ने इसे एक ऐतिहासिक स्वरूप दिया। देवताओं की चेतावनी और संदेश मानव समाज को एक गहरा संदेश देते हैं — प्रकृति, आस्था और परंपरा का सम्मान ही जीवन का सच्चा धर्म है।

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